मनोजवम् मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियम् बुद्धिमताम् वरिष्ठम्। ओम् ऐं ह्रीं हनुमते रामदुते लंकविधवंसने अंजनी गर्भ सम्भुतय शकिनि डाकिनी विध्वंसनाय किलकिली बुबुकरेन विभीषण हनुमददेवय ओम ह्रीं ह्रीं हं फट् स्वाहा लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥ जुग सहस्र जोजन पर भानु । मंगल भवन अमंगलहारी द्रवहु सो दशरथ अजिर विहारी। O The Son https://www.instagram.com/reel/DFWTy0gvMKk/
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